व्यंजन कितने होते है ? – Vyanjan kitne hote Hain

Vyanjan kitne hote hain :- दोस्तों, जब भी आप हिंदी ग्रामर पढ़ते होंगे या फिर हिंदी भाषा के फॉर्मेट को समझने की कोशिश करते होंगे। तब सबसे पहले आपको व्यंजन को समझना पड़ता है, अगर आप व्यंजन के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं और व्यंजन से जुड़ा हर एक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं।

तो हमारे इस लेख के साथ अंत तक बने रहे, क्योंकि इस लेख में हम स्टेप बाय स्टेप कर के व्यंजन से जुड़ी हर एक जानकारी प्रदान करने वाले हैं, तो चलिए शुरू करते हैं, इस लेख को बिना देरी किए हुए।


Vyanjan kitne hote hain – व्यंजन कितने होते है ?

हिंदी वर्णमाला में मूल व्यंजनों की संख्या 33 होती है और कुल व्यंजन 41 होते हैं। 33 व्यंजनों में जब आगत व्यंजन, द्विगुण व्यंजन और संयुक्त व्यंजन को शामिल कर लिया जाता है तो व्यन्जनो की कुल संख्या 41 हो जाती हैं।

अगर प्रश्न पूछा जाए कि व्यंजन कितने होते हैं, तो उसका उत्तर 33 व्यजन होगा। परंतु यदि प्रश्न यह पूछा जाए कि आगत व्यंजन, द्विगुण व्यंजन और संयुक्त व्यंजन को शामिल करने के बाद व्यंजन की संख्या कितनी होती है, तब उसका उत्तर 41 व्यंजन होगा।


व्यंजन की परिभाषा

वे वर्ण जो स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं उन्हें व्यंजन कहते हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में अ स्वर मिला होता है। व्यंजनों को बोलते समय मुख से निकलने वाली वायु के मार्ग में रुकावट पैदा होती है जैसे – क, त, प इत्यादि।

हर व्यंजन का उच्चारण अ से मिलकर ही पूरा होता है। यदि उसमें से अ को निकाल दिया जाए तो उसका रूप हलंत के साथ हो जाता है जैसे – क्, त्, र् इत्यादि।


व्यंजन कितने होते हैं ? – vyanjan kitne hote hai

हिंदी वर्णमाला में स्वरों को निकाल देने पर शेष वर्ण क ख ग घ…. इत्यादि होते हैं, इन्हें व्यंजन कहा जाता है। हिंदी वर्णमाला में मुख्य रूप से 33 व्यंजन होते है।


व्यंजन कितने प्रकार के होते हैं ?

व्यंजन मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:-

  1. स्पर्श व्यंजन
  2. अंतस्थ व्यंजन
  3. उष्म व्यंजन
  • स्पर्श व्यंजन

ऐसे व्यंजन जिन का उच्चारण करते समय जिह्वा मुख के भीतर विभिन्न स्थानों का छूती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं। सरल भाषा में समझे तो, किसी शब्द का उच्चारण करते समय जब जीभ मुंह के अंदर अधिक भागों को टच करती है, तो वह स्पर्श व्यंजन कहलाता है।

स्पर्श व्यंजन में क से लेकर म तक के वर्ण आते हैं और इन वर्णो की संख्या 25 है। इन्हें 5 भागों में बांटा गया है :-

क वर्ग-   क ख ग घ ङ

च वर्ग-   च छ ज झ ञ

ट वर्ग-   ट ठ ड ढ ण

त वर्ग-   त थ द ध न

प वर्ग-   प फ ब भ म

इन वर्णो का उच्चारण क्रमशः कंठ, तालु, मूर्धा, दंत्य और होंठ इत्यादि के जीभ के अग्रभाग के स्पर्श से होता है।

  • अंतस्थ व्यंजन

जिन वर्णों का उच्चारण करते वक्त जीभ मुंह के भीतरी भागों को मामूली सा स्पर्श करता है अर्थात जिन का उच्चारण स्वर और व्यंजन के बीच स्थित हो, उसे अंतस्थ व्यंजन कहते हैं। अंतस्थ व्यंजन की संख्या 4 होती है जिनमे  य, र, ल, व शामिल हैं।

इन चार वर्णों में से य तथा व को संघर्ष हीन वर्ण या अर्ध स्वर वर्णो के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह वर्ण स्वरों की भांति बोले जाते हैं।

  • उष्म व्यंजन

जिन वर्णों का उच्चारण करते हुए हवा मुंह के विभिन्न भागों से रगड़ खाती हुई बाहर निकलती है तथा जिन वर्णो को बोलने पर गर्मी अर्थात उष्मा उत्पन्न होती है, वह वर्ण उष्म व्यंजन कहलाते हैं। उष्म व्यंजनों की संख्या 4 है, जिनमें  श, ष, स, ह शामिल है।


व्यंजन एवं उसके विभिन्र रुप

व्यंजन एवं उसके विभिन्र रुप निम्न है :-

  • उत्क्षिप्त व्यंजन

वे वर्ण जिनका उच्चारण जीभ के अगले भाग के द्वारा एकदम झटके से होता है, ऐसे वर्ण उत्क्षिप्त व्यंजन कहलाते हैं। उत्क्षिप्त व्यंजन की संख्या दो होती है – ड़ और ढ़। यह द्विगुण व्यंजन भी कहलाते हैं।

इन व्यंजनों का उच्चारण सुविधा जनक रूप से करने के लिए ड, ढ के नीचे बिंदी (़) लगाकर इनका उचारण किया जाता है। यह हिंदी वर्णमाला के द्वारा विकसित किए गए व्यंजन है।

  • संयुक्त व्यंजन

संयुक्त व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजन वर्णों को जोड़ कर बनता है। इन मे चार व्यजन क्ष, त्र, ज्ञ, श्र शामिल होते हैं।

संयुक्त व्यंजन के उदाहण –

क् + ष = क्ष

त् + र = त्र

ज् + ञ = ज्ञ

श् + र = श्र

ड़, ञ, ण, ड़, ढ़ ऐसे वर्ण है जिन से कोई शब्द शुरू नही होता है।

  • अयोगवाह

अनुस्वार (ं), विसर्ग (ः) को स्वरों के साथ रखा जाता है परन्तु ये स्वर ध्वनिय भी नही हैं। अयोगवाह का उच्चारण व्यंजन की तरह स्वर की मदद से होता है। ये उच्चारण की दृष्टि से व्यंजन की तरह और लिखने मे स्वर के समान होते हैं।

इनका जातीय योग न तो स्वर के साथ होता है और ना ही व्यंजन के साथ होता है, इसलिये इसे अयोग कहा जाता है, परंतु इसके बावजूद भी ये अर्थ वहन करते हैं इसलिये यह अयोगवाह कहलाते है।

  • चन्द्रबिन्दु ()

यह हिंदी की अपनी ध्वनि है। यह संस्कृत भाषा में नहीं पाई जाती। इसके उच्चारण करते समय हवा नाक और मुह दोनों से निकलती है। उदाहरण के लिए – बाँध, चाँद, गावँ, पावँ, इत्यादि।

  • विसर्ग ()

विसर्ग (:) का प्रयोग स्वर के पश्चात् किया जाता है। इसका प्रयोग अधिकतर संस्कृत में मिलता है, फिर भी हिंदी में इसका प्रयोग निम्न प्रकार से किया जा सकता हैं –

प्रायः,  अंतः करण,  दु:ख,  प्रातः,   इत्यादि।

  • हलन्त ()

जब  दो वर्णों को जोड़ने में असुविधा होती है, तब वहाँ पर हलंत चिन्ह का प्रयोग किया जाता है। जैसे –  बुड्ढ़ा, गड्ढ़ा इत्यादि।

  • चन्द्र ()

कुछ शब्दों में चंद्र चिन्ह का प्रयोग होता है। यह बिंदु रहित चंद्र है अर्थात इस पर बिंदु नही लगाया जाता है। इस का उच्चारण औ के समान होता है, आ के समान नहीं। अक्सर अंग्रेजी शब्दों के साथ ही इस का प्रयोग किया जाता है। जैसे –  नाॅलेज,  डॉक्टर,  ऑफिस, इत्यादि।


व्यंजन का वर्गीकरण

हिंदी व्यंजन को निम्न आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:-

  • उच्चारण स्थान के आधार पर

स्वरयंत्र मुखी –  ह

कंठ्य – क, ख, ग, घ, ङ

तालव्य – च, छ, ज, झ, ञ, य, श

मूर्धन्य – ट,ठ, ड, ढ, ण, ष

वत्सर्य – न,ल, र, स

दन्त्य – त, थ, द, ध

ओष्ठ्य

दन्त्योष्ठ्य – व, फ

दव्योष्ठय – प, फ, ब, थ, म

  • उच्चारण प्रयत्न के आधार पर

स्पर्श –  क, ख, ग, घ, ट,ठ, ड, झ,  त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ

स्पर्श-संघर्षी – च, छ, ज, झ

संघर्षी – स, श, ष

पार्श्विक – ल

लुंठित – र

उत्क्षिप्त – ड़, ढ़

अन्तस्थ या अर्द्धस्वर – य, व

अनुनासिक – ङ, ञ, ण, न, म

  • उच्चारण प्रयत्न ( बाह्य प्रयत्नके आधार पर
  • घोष
  • अघोष
  • अल्पप्राण
  • महाप्राण
  • पेशीय तनाव के आधार पर
  • कठोर
  • शिथिल

[ Conclusion ]

दोस्तों हमें उम्मीद है, कि आप हमारे इस लेख Vyanjan kitne hote Hain को ध्यान से पूरे अंत तक पढ़ चुके होंगे और इस लेख के मदद से आप व्यंजन से जुड़ा हर एक जानकारी प्राप्त कर चुके होंगे।

तो इस लेख Vyanjan kitne hote Hain को पढ़ने के लिए धन्यवाद आप कमेंट बॉक्स में यह जरूर बताएं कि आपको हमारे द्वारा प्रदान किया गया यह लेख कैसा लगा।


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